हर विरोध दरकिनार: सरकार ने पारित कराया एनएमसी बिल

हर विरोध दरकिनार: सरकार ने पारित कराया एनएमसी बिल

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की जगह लेने वाले राष्‍ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग बिल आखिरकार राज्‍यसभा से भी पारित हो गया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। अब राष्‍ट्रपति के दस्‍तखत के बाद ये बिल कानून बन जाएगा। इसमें चिकित्सा क्षेत्र एवं चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र के नियमन के लिए भारतीय चिकित्सा परिषद की जगह एनएमसी के गठन का प्रस्ताव है। 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन के विधेयक पर जवाब के बाद उच्च सदन ने विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इस विधेयक पर लाए गए विपक्ष के विभिन्न संशोधनों को ध्वनिमत से जबकि दो संशोधन प्रस्तावों को क्रमश:61 के मुकाबले 106 मतों तथा दूसरे को 51 के मुकाबले 104 मतों से खारिज कर दिया। 

स्वास्थ्य मंत्री ने विधेयक में दो सरकारी संशोधन भी पेश किए जिसे सदन ने ध्वनिमत से पारित कर दिया। वैसे तो इस विधेयक को लोकसभा की मंजूरी मिल गई है लेकिन इन दो नए सरकारी संशोधनों के कारण इसे अब फिर निचले सदन में भेजकर उनकी मंजूरी ली जाएगी।

इससे पहले विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने इस विधेयक के प्रावधानों से देश की संघीय प्रणाली को नुकसान पहुंचने संबंधी विभिन्न दलों के सदस्यों की आशंकाओं को गलत बताया। उन्होंने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि एनएमसी विधेयक चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में व्याप्त अनियमितताओं को दूर करने में मददगार साबित होगा।

हर्षवर्धन ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि एनएमसी विधेयक संघीय स्वरूप के खिलाफ है। इसमें राज्यों को अपनी सहूलियत के मुताबिक संशोधन करने का अधिकार होगा और इसके तहत राज्य सरकारें निजी क्षेत्र के मेडिकल कालेज के संचालन हेतु सहमति पत्र (एमओयू) का सहारा ले सकेंगे। 

चर्चा के दौरान विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्यों ने इस विधेयक को संघीय भावना के खिलाफ बताया था। चर्चा के जवाब में डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि किसी भी मेडिकल कॉलेज की स्थापना, राज्यों से जरूरी प्रमाणपत्र प्राप्त किए बिना नहीं हो सकती है। विधेयक में डाक्टरों के पंजीकरण में राज्य सरकारों की भूमिका सुनिश्चित की गई है। उन्होंने स्पष्ट किया कि मेडिकल कॉलेजों के दैनिक क्रियाकलापों में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं होगी।

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, ‘एनएमसी विधेयक निहित स्वार्थी तत्वों का विरोधी और लोकोन्मुखी है। यह इंस्पेक्टर राज को कम करने में मदद करेगा। इसमें हितों का टकराव रोकने की व्यवस्था की गई है। डाक्टरों के डाटाबेस से शुचिता सुनिश्चित की जा सकेगी।’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि एनएमसी विधेयक लोकोन्मुखी विधेयक है। इसमें नीम हकीमों को कड़ा दंड देने का प्रावधान किया गया है। 

उन्होंने चिकित्सा स्नातक पाठ्यक्रम (एमबीबीएस) से जुड़ी राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा (नीट) और परास्नातक परीक्षा (नेक्स्ट) के बारे विभिन्न सदस्यों की चिंताओं को विधेयक के प्रावधानों से जुड़ी भ्रामक समीक्षा का परिणाम बताया। उन्होंने कहा कि नीट परीक्षा की व्यवस्थित प्रक्रिया पहले से ही विद्यमान है। इसमें सिर्फ इतना बदलाव यह किया गया है कि एमबीबीएस पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष में सभी छात्रों को राष्ट्रीय स्तर पर नेक्स्ट परीक्षा देनी होगी। इसमें चिकित्सा शिक्षा की तीनों प्रमुख विधाओं, थ्योरी, प्रायोगिक और क्लीनिकल की परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।

इस परीक्षा में सफल होने के बाद इंटर्नशिप करने वाले छात्रों को ही एमबीबीएस की डिग्री मिलेगी। साथ ही वे चिकित्सक के रूप में प्रैक्टिस करने और परास्नातक के लिए योग्य माने जाएंगे। 

विधेयक में सामुदायिक सेवा (कम्यूनिटी सर्विस प्रोवाइडर) के प्रावधान शामिल किए जाने से झोलाछाप डाक्टरों की एक बार फिर समस्या उभरने संबंधी विभिन्न सदस्यों की आशंकाओं को खारिज करते हुए डॉ. हर्षवर्धन ने कहा कि एनएमसी के 25 सदस्यों में 21 डॉक्टर होंगे। ये सभी सदस्य ही तय करेंगे कि नर्स सहित अन्य कर्मियों में से किसे चिकित्साकर्मी के रूप में काम करने की अनुमति दी जाए। इनके कामकाज की व्यवस्था एनएमसी करेगा।

उन्होंने कहा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मान्यताप्राप्त यह व्यवस्था नीम हकीम सहित अन्य रूपों में काम करने वाले फर्जी डाक्टरों की समस्या से मुक्ति दिलाने वाली साबित होगी। 

चिकित्सा शिक्षा पाठ्यक्रमों की सीट सरकारी मेडिकल कालेजों में कम होने के बारे में डॉ. हर्षवर्धन ने स्पष्ट किया कि इस समय देश में एमबीबीएस की लगभग 80 हजार सीटें हैं। इनमें 40 हजार निजी और इतनी ही सरकारी कालेजों में हैं। 

उन्होंने कहा कि सरकारी कालेजों की फीस बहुत कम है लेकिन निजी कालेजों की 50 प्रतिशत सीटों की फीस केंद्र सरकार और 50 प्रतिशत सीटों की फीस राज्य सरकार नियमित करेंगी। उन्होंने एनएमसी में राज्यों के सीमित प्रतिनिधित्व की आशंका को भी गलत बताते हुए कहा कि आयोग के 25 सदस्यों में 16 सदस्य राज्यों से होंगे। उन्होंने कहा कि विभिन्न दलों के सदस्यों के अनुरोध पर सरकार ने विधेयक में संशोधन कर आयोग में राज्यों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाया है।

डॉ. हर्षवर्धन ने कहा, ‘एनएमसी विधेयक का आज आप कितना भी मखौल उड़ा लें लेकिन जब इस विधेयक का इतिहास लिखा जाएगा तब इसकी कामयाबी साबित होगी।’ उल्लेखनीय है कि यह विधेयक ऐसे समय उच्च सदन से पारित किया गया है जबकि इसके विरोध में चिकित्साकर्मी और छात्र आंदोलन कर रहे हैं।

स्वस्थ्य मंत्री ने कहा कि बतौर चिकित्सक, वह पिछले चार दशक से चिकित्सा सेवा क्षेत्र और डॉक्टरों की समस्याओं के लिए संघर्षरत रहे हैं। उन्हें इस क्षेत्र की समस्याओं का पूरा अंदाज है। उन्होंने कहा, ‘अपने अनुभव के आधार पर मैं आश्वस्त कर सकता हूं कि यह विधेयक इस क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करने और चिकित्सा शिक्षा को बेहतर बनाने वाला साबित होगा।’ 

इससे पहले अन्नाद्रमुक के सदस्यों ने तमिलनाडु में चिकित्सा शिक्षा परीक्षा प्रणाली से जुड़ी समस्याओं पर मंत्री द्वारा स्पष्ट जवाब नहीं देने के विरोध में सदन से वाकआउट किया। मंत्री के जवाब के बाद सदन ने संशोधनों के साथ विधेयक को पारित कर दिया। 

उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग से संबंधित संसद की एक स्थायी समिति ने अपनी 92वीं रिपोर्ट में आयुर्विज्ञान शिक्षा और चिकित्सा व्यवसाय की विनियामक पद्धति का पुनर्गठन और सुधार करने के लिए तथा डॉ. रंजीत राय चौधरी की अध्यक्षता वाले विशेष समूह द्वारा सुझाए गए विनियामक ढांचे के अनुसार भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद में सुधार करने के लिए कदम उठाने की सिफारिश की थी।

इन सिफारिशों को ध्यान में रखते हुए लोकसभा में 29 दिसंबर, 2017 को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग विधेयक 2017 पुन:स्थापित किया गया था, इसे बाद में संसद की स्थायी समिति को भेज दिया गया।

स्थायी समिति ने बाद में उक्त विधेयक पर अपनी रिपोर्ट पेश की। समिति की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने 28 मार्च 2018 को लोकसभा में लंबित विधेयक के संबंध में आवश्यक सरकारी संशोधन पेश किए थे लेकिन इसे विचार एवं पारित किए जाने के लिए नहीं लाया जा सका। 16वीं लोकसभा के विघटन के बाद यह समाप्त हो गया।

विधेयक में चार स्वशासी बोर्डो के गठन का प्रस्ताव किया गया है। इसमें स्नातक पूर्व और स्नातकोत्तर अतिविशिष्ट आयुर्विज्ञान शिक्षा में प्रवेश के लिए एक सामान्य राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश (नीट) परीक्षा आयोजित करने की बात कही गई है।

इसमें चिकित्सा व्यवसायियों के रूप में चिकित्सा व्यवसाय करने हेतु एवं राज्य रजिस्टर और राष्ट्रीय रजिस्टर में नामांकन के लिए एक राष्ट्रीय निर्गम (एक्जिट) परीक्षा आयोजित करने की बात कही गई है।

इसमें विश्वविद्यालयों और आयुर्विज्ञान संस्थाओं द्वारा अनुदत्त चिकित्सा अर्हताओं की मान्यता तथा भारत में ऐसे कानून एवं अन्य निकायों द्वारा अनुदत्त चिकित्सा अर्हताओं को मान्यता प्रदान करने की बात कही गई है।

इसमें सरकारी अनुदानों, फीस, शास्तियों और प्रभारों को जमा करने के लिए राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग निधि गठित करने की भी बात कही गई है।

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